ये व्यथा है एक मां की...। एक ऐसी मां जो अपने बेटे को खो चुकी है और आज अकेली इस देश की क्रूर व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। जिस मां के बारे में मैंने पिछली पोस्ट में लिखा है, ये उसी मां की आवाज़ है। वो अभागी मां जो अपने घायल बेटे को इस उम्मीद से अस्पताल ले गई ताकि उसका इलाज हो सके। लेकिन वहां पर मौजूद 'भगवानों' ने जो किया उससे मानवता भी शर्मिन्दा हो जाए। इस क्लिप को सुनिए और खुद तय कीजिए कि हमारा देश कहां खड़ा है।
लघुकथा की भाषिक संरचना / बलराम अग्रवाल
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यह लेख मार्च 2024 में प्रकाशित मेरी आलोचनात्मक पुस्तक 'लघुकथा का साहित्य
दर्शन' में संग्रहीत लेख 'लघुकथा की भाषिक संरचना' का उत्तरांश है। पूर्वांश
के लि...
1 week ago
दुखद है अब इस मामले को देखकर लगता है कि आखिर लो व्यवस्था को प्रशासन को दोष न दें तो क्या करें
आदर्श.. बेहतरीन कोशिश की है तुमने.. वाकई बहुत दुखद है..
maarmik..............
वाकई में बहुत ही दुखद घटना है।