आज फिर मैंने अपना पेन खो दिया। खो दिया या शायद किसी ने चुरा लिया। हां चुराना सही शब्द है, किसी ने लिया और फिर लौटाया ही नहीं। दुख की बात तो ये है कि काम में व्यस्त होने के कारण मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि पेन मैंने किसे दे दिया।
मेरी भावनाओं को वही समझ सकता है जो मेरी तरह भुक्तभोगी होगा। आपके परिवेश में कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने पेन तो रखते नहीं और दूसरों से पेन मांगते फिरते हैं। उनमें से कुछ लोग तो ईमानदारी से समय पर वापस भी कर देते हैं लेकिन कुछ धूर्त ऐसे भी होते हैं जो उसे अपने पास रख लेते हैं और कभी नहीं लौटाते। मैं कई बार ऐसे लोगों की धूर्तता का शिकार हुआ हूं।
मुझे पेन मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा लगता है। पेन के बिना मैं खुद को अधूरा महसूस करता हूं। मैं कितने भी अच्छे कपड़े क्यों न पहन लूं, जब तक कमीज़ की जेब में पेन सुसज्जित नहीं होता है, तब तक सब कुछ फीका ही लगता है। अगर मैं कहूं कि पेन मेरे 'श्रृंगार' का हिस्सा है तो ग़लत नहीं होगा। मैं जेब में रुमाल डालना भूल सकता हूं लेकिन पेन नहीं...।
लेकिन आज लग रहा है इस दुनिया में सिर्फ मैं ही बेवकूफ हूं। पता नहीं क्यों मैं ऐसा नहीं कर सकता कि मेरे पास पेन हो और किसी के मांगने पर न दूं। मैं इतना निष्ठुर मैं नहीं हो सकता, मेरी प्रकृति ही नहीं है ऐसी। और दुख की बात ये है कि मेरे आसपास सभी को पता है कि मेरे पास हर वक्त पेन उपलब्ध होगा। इसलिए सभी ज़रूरत पड़ने पर मेरे पास ही आते हैं। आज मैं समझा कि कई लोग पेन होने के बावजूद लोगों को क्यों नहीं दिया करते थे। पहले जहां मैं उनको छोटी सोच वाला कहा करता था, अब उन्हें सबसे बुद्धिमान पा रहा हूं।
बचपन से ही मैं अपने पास चाइनीज़ फाउंटेन पेन रखा करता था। वो भी मेरे पिता जी ने ही मुझे दिया था। लेकिन पेन चोरों ने उसे भी नहीं बख्शा। उड़ा ले गए कमबख्त...। साल भर पहले की ही बात है ये....। उसके बाद फिर मैंने साधारण बॉल पेन रखना शुरू कर दिया था। वो भी हर दूसरे-तीसरे दिन ग़ायब हो जाया करते। मुझे नहीं याद कि मेरे पास कोई पेन ऐसा रहा हो जिसका रिफिल बदलने की ज़रूरत महसूस हुई हो। अभी 5 फीसदी स्याही भी इस्तेमाल नहीं होती होगी कि वो 'उड़' जाया करता था।
लेकिन इस बार घर गया था तो पापा ने दिवाली के दिन मुझे गोल्डन ट्रिम वाला पार्कर का जॉटर पेन उपहार स्वरूप दिया था। एक पुत्र के लिए पिता का दिया हुआ तोहफा कितने मायने रखता है, ये आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। सामने की जेब में सुसज्जित गोल्डन ट्रिम (क्लिप) वाला वो पेन मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया करता था।
आज शिफ्ट पूरी होने के बाद ऑफिस से निकला और उपस्थिती रजिस्टर में हस्ताक्षर करने के मकसद से पैन निकालने के लिए हाथ बढ़ाया। ये क्या? पेन कहां गया... धीरे-धीरे मैंने अपनी पैंट और जैकेट की सभी जेबें चेक कीं... पेन नहीं मिला...। मैं वापस मुड़ा और अपने डेस्क पर गया और हर जगह छानबीन की। लोगों से पूछा भी लेकिन कहीं से कुछ पता नहीं चला। हर उस जगह मैंने पेन को ढूंढा जहां मैं गया था लेकिन भला अब कहां मिलता वो? फिर भी मैंने हर संभव जगह उसे ढूंढने की कोशिश की और अंतत: थक हारकर भारी मन से घर आ गया...।
रात के डेढ़ बज रहे हैं और आंखों में दूर-दूर तक नींद नहीं है। बार-बार भूलने की कोशिश कर रहा हूं और अपना ध्यान बंटाने की कोशिश कर रहा हूं। ईश्वर से दुआ भी कर रहा हूं कि कल कुछ चमत्कार हो जाए और कोई मेरा पेन मुझे वापस लौटा दे। लेकिन अब मैंने ठान लिया है कि अब मैं कभी भी किसी को अपना पेन नहीं दूंगा। जिसको ज़रूरत हो वो अपना पेन रख ले, समाजसेवा अब बंद। भले ही लोग मुझे जो कहें, ऐसा करने से संबंध खराब होते हों तो हो जाएं... मुझे फर्क नहीं पड़ता...। सबक मिला है कि इस दुनिया में रहना है तो उदारह्रदयता को त्याग देना होगा। अन्यथा लोग फायदा उठाते जाएंगे और आप इसी तरह आहत होते रहेंगे...
मेरी भावनाओं को वही समझ सकता है जो मेरी तरह भुक्तभोगी होगा। आपके परिवेश में कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने पेन तो रखते नहीं और दूसरों से पेन मांगते फिरते हैं। उनमें से कुछ लोग तो ईमानदारी से समय पर वापस भी कर देते हैं लेकिन कुछ धूर्त ऐसे भी होते हैं जो उसे अपने पास रख लेते हैं और कभी नहीं लौटाते। मैं कई बार ऐसे लोगों की धूर्तता का शिकार हुआ हूं।
मुझे पेन मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा लगता है। पेन के बिना मैं खुद को अधूरा महसूस करता हूं। मैं कितने भी अच्छे कपड़े क्यों न पहन लूं, जब तक कमीज़ की जेब में पेन सुसज्जित नहीं होता है, तब तक सब कुछ फीका ही लगता है। अगर मैं कहूं कि पेन मेरे 'श्रृंगार' का हिस्सा है तो ग़लत नहीं होगा। मैं जेब में रुमाल डालना भूल सकता हूं लेकिन पेन नहीं...।
लेकिन आज लग रहा है इस दुनिया में सिर्फ मैं ही बेवकूफ हूं। पता नहीं क्यों मैं ऐसा नहीं कर सकता कि मेरे पास पेन हो और किसी के मांगने पर न दूं। मैं इतना निष्ठुर मैं नहीं हो सकता, मेरी प्रकृति ही नहीं है ऐसी। और दुख की बात ये है कि मेरे आसपास सभी को पता है कि मेरे पास हर वक्त पेन उपलब्ध होगा। इसलिए सभी ज़रूरत पड़ने पर मेरे पास ही आते हैं। आज मैं समझा कि कई लोग पेन होने के बावजूद लोगों को क्यों नहीं दिया करते थे। पहले जहां मैं उनको छोटी सोच वाला कहा करता था, अब उन्हें सबसे बुद्धिमान पा रहा हूं।
बचपन से ही मैं अपने पास चाइनीज़ फाउंटेन पेन रखा करता था। वो भी मेरे पिता जी ने ही मुझे दिया था। लेकिन पेन चोरों ने उसे भी नहीं बख्शा। उड़ा ले गए कमबख्त...। साल भर पहले की ही बात है ये....। उसके बाद फिर मैंने साधारण बॉल पेन रखना शुरू कर दिया था। वो भी हर दूसरे-तीसरे दिन ग़ायब हो जाया करते। मुझे नहीं याद कि मेरे पास कोई पेन ऐसा रहा हो जिसका रिफिल बदलने की ज़रूरत महसूस हुई हो। अभी 5 फीसदी स्याही भी इस्तेमाल नहीं होती होगी कि वो 'उड़' जाया करता था।
लेकिन इस बार घर गया था तो पापा ने दिवाली के दिन मुझे गोल्डन ट्रिम वाला पार्कर का जॉटर पेन उपहार स्वरूप दिया था। एक पुत्र के लिए पिता का दिया हुआ तोहफा कितने मायने रखता है, ये आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। सामने की जेब में सुसज्जित गोल्डन ट्रिम (क्लिप) वाला वो पेन मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया करता था।
आज शिफ्ट पूरी होने के बाद ऑफिस से निकला और उपस्थिती रजिस्टर में हस्ताक्षर करने के मकसद से पैन निकालने के लिए हाथ बढ़ाया। ये क्या? पेन कहां गया... धीरे-धीरे मैंने अपनी पैंट और जैकेट की सभी जेबें चेक कीं... पेन नहीं मिला...। मैं वापस मुड़ा और अपने डेस्क पर गया और हर जगह छानबीन की। लोगों से पूछा भी लेकिन कहीं से कुछ पता नहीं चला। हर उस जगह मैंने पेन को ढूंढा जहां मैं गया था लेकिन भला अब कहां मिलता वो? फिर भी मैंने हर संभव जगह उसे ढूंढने की कोशिश की और अंतत: थक हारकर भारी मन से घर आ गया...।
रात के डेढ़ बज रहे हैं और आंखों में दूर-दूर तक नींद नहीं है। बार-बार भूलने की कोशिश कर रहा हूं और अपना ध्यान बंटाने की कोशिश कर रहा हूं। ईश्वर से दुआ भी कर रहा हूं कि कल कुछ चमत्कार हो जाए और कोई मेरा पेन मुझे वापस लौटा दे। लेकिन अब मैंने ठान लिया है कि अब मैं कभी भी किसी को अपना पेन नहीं दूंगा। जिसको ज़रूरत हो वो अपना पेन रख ले, समाजसेवा अब बंद। भले ही लोग मुझे जो कहें, ऐसा करने से संबंध खराब होते हों तो हो जाएं... मुझे फर्क नहीं पड़ता...। सबक मिला है कि इस दुनिया में रहना है तो उदारह्रदयता को त्याग देना होगा। अन्यथा लोग फायदा उठाते जाएंगे और आप इसी तरह आहत होते रहेंगे...
ये तो पहले ही पढ़ चुके हैं.
पेन बचाने के :
1. पेन ऐसे रखिए कि दिखे न कि रखे हैं । जैसे शर्ट के अंदर बनियान में खोंसिए । या तो दो पेन रखिए ,एक सेवा के लिए ओर एक अपने उपयोग के लिए ।
2. पेन का उपयोग करते समय कोई मॉगे तो कह दीजिए कि दूसरे का है ।
3. फिर भी कोई ढीठ माँग ही ले तो उसे देने से साफ इंकार कर दीजिए ।
ज्यादा अनुरोध करने पर दे दीजिए । इससे आपका पेन बचा रह सकता है ।
अर्कजेश said... मुझको बहुत पसंद आया..
Ji haan,
galti se delete ho gayi thi ye post
Isliye dobara Prakashit kar raha haoon
adarsh bahiya ye duniya badi zalim hai . kambkaht pen tak nahi chodti hai.
हाल ही मेरा "जीरो ग्रेविटी" पेन खो गया.....उसका मूल्य मेरे लिए three idiots में रैंचो कों मिली पेन से भी कही अधिक था. gel pen थी, लिखना बस शुरू ही किया था....physics teacher कों लैब में उधार दी थी और वापस लेना भूल गयी....और teacher लैब की टेबल पर रख कर भूल गयी...मैंने फिर पूरी लैब छान मारी नहीं मिली, शायद किसी स्टुडेंट ने मार ली.