आकाश कुमार
वर्तमान युग में रिश्ते नाते केवल कहने के लिए रह गये हैं। कोख से जन्म लेने वाला बेटा तो कहलाता हे लेकिन वो बेटे का फर्ज अदा नही करता। अपने जन्म देने वाले को वो मां-बाप तो कहता है लेकिन अपने जीवन में मां-बाप का महत्तव नहीं जानता है। । कोख से जन्म लेने वाली लड़की बेटी तो कहलाती है लेकिन वो बेटी होने का मतलब नहीं समझती। कलाई पर राखी बंधवाने वाला भाई तो कहलाता है लेकिन वो अपने बहन के प्रति दायित्व को नहीं निभा पाता है।
मनुष्य जब तक बाल्य अवस्था में रहता है कुछ भी करने में खुद को असहाय महसूस करते हैं तब तक तो ये अपने माता-पिता की बातों में विश्वास करते हैं लेकिन अपने मस्तिष्क के विकास के साथ ही बच्चे उनकी बातों को दरकिनार करने लगते हैं। आज के समय में बच्चे अपने जन्म देने वाले को मां-बाप तो कहते हैं लेकिन उनके अंदर वो सम्मान नहीं झलकता जो किसी जमाने में देखा जाता था। आज की युवा पीढ़ी 21 वीं सदी में जी रही है जो हर काम को एक जॉब के रुप में देखाती है। ये पीढ़ी उस जॉब के बदले में कुछ लाभ पाने की इच्छा रखती है। मतलब ये कि उस काम को करो जिससे कुछ मिलने वाला हो, जिससे कुछ मिलने वाला न हो उसको करने से क्या फायदा? आज के युवाओं में ये बात उसी तरह बैठ गयी है जैसे सोना पे सुहागा।
किसी जमाने में श्रवण कुमार ने अपने मां-बाप को डोली में बिठाकर कंधे पर उठाया था और इसी तरह सारे तीर्थ स्थलों की सैर कराई थी। सदियां गुज़र गई हैं इस प्रसंग को। मां-बाप को बेटे का कंधा तो आज भी नसीब होता है लेकिन उनकी अंतिम यात्रा के समय। माता-पितो को ये परम सुख उस वक्त प्राप्त होता है जब वो अपने निवास से शमशान तक के सफर को किसी उलटी चारपाई पर तय करते हैं। लेकिन कुछ माता-पिता को तो उस वक्त भी बेटे का कांधा नसीब नहीं होता। क्योंकी उस वक्त उनके बच्चे किसी कलयुगी उपाधि के सहारे उनसे हजारों कोस दूर दूसरे मुल्क में अपने बच्चे और बीवी होते हैं।
मैं ये नहीं कहता कि आज की हर औलाद ऐसी है लेकिन 100 में से 95 फीसदी बच्चे इसी प्रकार के हैं जो वृद्धावस्था में अपने मां-बाप को नहीं देखते हैं। अपने मां-बाप से कन्नी काटते हैं। 5 फीसदी बच्चे ऐसे ही हैं जो बुढ़ापे में माता-पिता का सहारा बनते हैं। शायद इन्हीं 5 फीसदी की बदौलत नवविवाहित आज एक पुत्ररत्न की कामना करते हैं। लेकिन जल्द ही ये 5 फीसदी भी नहीं बचेंगे। फिर जो दौर आएगा उसमें मां-बाप एक ही कामना करेंगे कि कौनो जनम हमका बेटा न दीजो...
वर्तमान युग में रिश्ते नाते केवल कहने के लिए रह गये हैं। कोख से जन्म लेने वाला बेटा तो कहलाता हे लेकिन वो बेटे का फर्ज अदा नही करता। अपने जन्म देने वाले को वो मां-बाप तो कहता है लेकिन अपने जीवन में मां-बाप का महत्तव नहीं जानता है। । कोख से जन्म लेने वाली लड़की बेटी तो कहलाती है लेकिन वो बेटी होने का मतलब नहीं समझती। कलाई पर राखी बंधवाने वाला भाई तो कहलाता है लेकिन वो अपने बहन के प्रति दायित्व को नहीं निभा पाता है।
मनुष्य जब तक बाल्य अवस्था में रहता है कुछ भी करने में खुद को असहाय महसूस करते हैं तब तक तो ये अपने माता-पिता की बातों में विश्वास करते हैं लेकिन अपने मस्तिष्क के विकास के साथ ही बच्चे उनकी बातों को दरकिनार करने लगते हैं। आज के समय में बच्चे अपने जन्म देने वाले को मां-बाप तो कहते हैं लेकिन उनके अंदर वो सम्मान नहीं झलकता जो किसी जमाने में देखा जाता था। आज की युवा पीढ़ी 21 वीं सदी में जी रही है जो हर काम को एक जॉब के रुप में देखाती है। ये पीढ़ी उस जॉब के बदले में कुछ लाभ पाने की इच्छा रखती है। मतलब ये कि उस काम को करो जिससे कुछ मिलने वाला हो, जिससे कुछ मिलने वाला न हो उसको करने से क्या फायदा? आज के युवाओं में ये बात उसी तरह बैठ गयी है जैसे सोना पे सुहागा।
किसी जमाने में श्रवण कुमार ने अपने मां-बाप को डोली में बिठाकर कंधे पर उठाया था और इसी तरह सारे तीर्थ स्थलों की सैर कराई थी। सदियां गुज़र गई हैं इस प्रसंग को। मां-बाप को बेटे का कंधा तो आज भी नसीब होता है लेकिन उनकी अंतिम यात्रा के समय। माता-पितो को ये परम सुख उस वक्त प्राप्त होता है जब वो अपने निवास से शमशान तक के सफर को किसी उलटी चारपाई पर तय करते हैं। लेकिन कुछ माता-पिता को तो उस वक्त भी बेटे का कांधा नसीब नहीं होता। क्योंकी उस वक्त उनके बच्चे किसी कलयुगी उपाधि के सहारे उनसे हजारों कोस दूर दूसरे मुल्क में अपने बच्चे और बीवी होते हैं।
मैं ये नहीं कहता कि आज की हर औलाद ऐसी है लेकिन 100 में से 95 फीसदी बच्चे इसी प्रकार के हैं जो वृद्धावस्था में अपने मां-बाप को नहीं देखते हैं। अपने मां-बाप से कन्नी काटते हैं। 5 फीसदी बच्चे ऐसे ही हैं जो बुढ़ापे में माता-पिता का सहारा बनते हैं। शायद इन्हीं 5 फीसदी की बदौलत नवविवाहित आज एक पुत्ररत्न की कामना करते हैं। लेकिन जल्द ही ये 5 फीसदी भी नहीं बचेंगे। फिर जो दौर आएगा उसमें मां-बाप एक ही कामना करेंगे कि कौनो जनम हमका बेटा न दीजो...
Sachmuch chintaneey.
( Treasurer-S. T. )
sahi kaha.........waqt aur halat aaj ke yahi darsh arahe hain.
ए भाई...अपन तो बाकि के पांच में हैं....आखिरी सांस तक रहेंगे....और इस करके तमाम माँ-बापों को के विश्वास को जीवन प्रदान करते रहेंगे...!!
सही कहा। थोड़ी अशुद्धियां नज़र आ रही हैं आकाश जी। भाव बहुत अच्छे हैं। वो लाइन दिल छू गई कि कंधा तो आज भी नसीब होता है।
सही है लेकिन आंकड़ा कहां का दिया है ये तो बता देते। लेकिन आपकी बात का कहीं तक मै भी समर्थन देता हूं
हर बार इस ब्लाग में बकवास ही पढ़ने को मिलती है
मैने एक बहुत ही तार्किक तथ्य पढ़ा था जिसका उल्लेख मे यहाँ करना चाहूँगा
"हमारी आधी ज़िंदगी हमारे मा-बाप खराब कर देते हैं और बाकी की आधी ज़िंदगी हमारे बच्चे खराब करते हैं"
ऐसे में समझ नहीं आता की अगले जनम मे क्या बनने की कामना करें
एक बात मैंने नोटिस की है. लड़के तभी बदल जाते हैं जब उनकी शादी हो जाती है. भारत में अभी भी अरेंज्ड मैरिज ज्यादातर होती है. अगर लड़के की शादी ही ना की जाये तो क्या ये सब रुक जायेगा? वैसे भी लड़का लड़की अनुपात गड़बड़ है.