Aadarsh Rathore
सुबह के 8 आठ बज रहे थे। रिंग रोड पर सरपट भागती गाड़ियों की चिल्लपौं और उमस भरी गर्मी में खचाखच भरा बस स्टॉप। पसीने से तरबतर होता हुआ मैं बस का इंतजार कर रहा था। मैं कुछ देर स्टॉप के पोल का सहारा लेकर बसों के कारवां में अपने रूट की बस ढूंढ रहा था। कुछ देर इंतज़ार किया लेकिन बस नहीं आई। थक-हारकर मैं बैंच पर बैठ गया। अचनाक मेरी नज़र बगल में बैठे व्यक्ति पर गई...। हाथ में ड्राइंग फाइल और पेंसिल लिए बैठा वह शख्स इधर-उधर देख रहा था...। तभी सामने एक ऑटो आकर खड़ा हो गया। ऑटो रुका और वह बंदा चालू हो गया.. ड्राइंग शीट पर पहले एक आड़ी रेखा फिर दो तिरछी रेखाएं खींची...। एक नज़र वह ऑटो को देखता और फिर से रेखाएं खींचने में लग जाता..। लगभग 30 सैकेंड में मामला साफ हो गया कि वह उस ऑटो का स्केच बना रहा था। मैं हैरान रह गया, इतनी फुर्ती और निपुणता कि स्केच में वह ऑटो सजीव दिकने लगा। मन खुश हो गया मेरा..। तभी सामने रुका ऑटो आगे बढ़ गया...। वह युवक अब कोई दूसरा दृश्य देखने लगा...।

इतने में सामने तेज़ी से एक बस आकर रुकी। हवा के झोंके से उसकी फाइल का एक पन्ना पलट गया....। और यकीन मानिए.. मैंने जो देखा उसे देखर मैं स्तब्ध रह गया... उस पेपर पर मेरा स्केच बना हुआ था....। बस स्टॉप पर कमर पर हाथ रखकर खड़ा मैं....। गजब का स्केच था.. । मैं करीब 2 मिनट तक पोल के सहारे खड़ा था और उन भाई साहब ने मेरी उस मुद्रा को यथावत स्केच में उतार दिया था। मैं उसकी कला से बेहद प्रभावित हुआ..। वह विलक्षण प्रतिभा का युवक लगातार स्केच बनाता जा रहा था...। मैंने देखा कि वह बड़े ही कम समय में एकदम सही अनुपात में और यथावत दृश्य को कागज में उतारने में निपुण था। इतने में कि मैं उससे बात कर पाता और परिचय लेता.. सामने से मेरी बस आ गई..। जल्दबाजी में मैने उन भाई से हाथ मिलाया और दो शब्द कहे...। इससे पहले कुछ और बात हो पाती.. मेरी बस ने चलना शुरु कर दिया..। मैं तुरंत बाय कहा और बस पर सवार हो गया..।

बस स्टॉप एक बेहतरीन जगह होती है। आपको जिंदगी के कई रंग बस स्टॉप पर दिख जाएंगे। शायद इसीलिए वह मित्र वहां बैठकर अभ्यास कर रहा था। अगर वह बस का इंतज़ार करते हुए टाइम पास भी कर रहा था तब इससे बेहतर बात क्या हो सकती है। आपका शौक भी पूरा हो रहा है, आपको नया विषय भी मिल रहा है और टाइम भी पास हो रहा है। बेहतरीन..., इस घटना से मैं बहुत प्रेरित हुआ..। वह व्यक्ति एक ही समय में कई काम कर रहा था। अपने परिवेश का अध्ययन कर रहा था, अपने शौक को पूरा कर रहा था, अभ्यास से अपनी कला में निखार ला रहा था और सबसे बड़ी बात ये कि वह बता रहा था कि कैसे बिना किसी की फिक्र किए अपनी धुन में मस्त रहकर जिंदगी को पूरी तरह जिया जा सकता है...। परिवेश कैसा भी हो... उसमें भी सुंदरता ढूंढी जा सकती है और कुछ न कुछ सीखा जा सकता है...
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13 Responses
  1. सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।

    आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
    आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
    Link : www.meripatrika.co.cc

    …Ravi Srivastava


  2. कलाकार तो बहुत हैं आदर्श भाई, बस उन्हें पहचानने वाला चाहिए, आपने अपनी आँखे खुली रखी तो आपने यव कलाकार देख लिया, नहीं तो समय पर ही बस आती, और आप उसमे स्वर होकर निकल जाते...


  3. Yachna Says:

    बस से जुड़े विषयों पर बहुत लिख रहे हैं आप आजकल


  4. मजेदार वाकया है.अक्सर ऐसे ही कुछ अन्य लोगों से मुलाकता हो जाती तब लगता है कि कितने कलाकर लोगो हमारे आसपास ही होते हैं लेकिन उसे कोई पहचान नहीं पाता. कुछ ऐसा ही काम करना चाहता था जिसमें शौक भी पूरा हो और काम भी होता रहे


  5. bahut hi badhiya ..........kalakaron ki apni hi shaili hoti hai aur apni hi pahchan uske liye unhein kisi khas tamge ki jaroorat nhi hoti.
    aapki bhi tarif hai kyunki aapne apni parkhi nazar se wo dekha jo aaj aam insaan dekhna hi nhi chahta.


  6. शायद आपकी कलम भी इसी बस स्टाप से लिखने की प्रेरणा लेती हो--- बहुत बडिया और सार्थक आलेख है बधाई


  7. Unknown Says:

    carry on bro....
    nice article
    keep writing....


  8. एक अच्छा अनुभव लिख दिया।


  9. Unknown Says:

    bahut hi achcha anubhav hai aur bahut hi achchi tumhari lekhan shaili..padd k bahut hi achcha laga...


  10. Manish Kumar Says:

    qamal ka anubhav raha ye to. share karne ke liye shukriya.


  11. kshitij Says:

    कला किसी की मोहताज नहीं होती....जैसे सूरज को न तो दीवार..न पेड़ पौधे न कोई ऊंची इमारत रोक सकती है....उसी तरह कलाकार को कोई रोक नहीं सकता...उसके मन की लगन...उसे बाध्य करती है कुछ कर गुजरने के लिए....तल्लीन होकर...और जहां तल्लीनता हो...एकाग्रता हो...वहां क्या मुश्किल.....मैं समझता हूं...आपकी जिस कलाकार से छोटी सी मुलाकात हुई..वो भी एकाग्रचित्त होकर ही वो सबकुछ कर पाता होगा...क्योंकि एकाग्रता में जो शक्ति होती है...वो किसी और में नहीं......


  12. इस लेख मे जो भाव निहित है मेरी समझ के अनुसार उसका एक अंश ये भी है कि "सचमुच कलाकार ज़मीन से जुड़ा होता है"...


  13. बस स्टाप पर ये ज़िंदगी का एक छोटा सा नमूना है। ज़िमदगी बहुत लंबी है, और बस स्टॉप पर ऐसे हज़ारों लोग दिन-रत गिनते हुए ज़िंदगी गुज़ार देते हैं, और कोई उनका पुरसाहाल नहीं होता। आपने अपनी कलम से उन लोगों की तस्वीर सामने रखी। बड़ा अच्छा लगा। कलाकार के साथ ही आपको भी सलाम