ये मेरा व्यक्तिगत विचार हो सकता है लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है कि काफ़ी समय से काफ़ी कुछ ठीक नहीं चल रहा है… या यूँ कहूँ कि कुछ ना कुछ गिरने की खबरें लगातार आ रही हैं। मसलन पिछले 8 – 10 महीनों से बाज़ार के गिरने की खबर थी… बाज़ार की इस तथाकथित गिरावट के चलते ना जाने कितने कर्मचारी भी गिर गये…। बाज़ार जबसे गिरा है… ना जाने क्या बात है कि उठ ही नहीं रहा। मुझे गाहे– बगाहे ये सुनने को मिल ही जाता है कि यार आजकल मार्किट काफ़ी डाउन (गिरा) है…। बाज़ार के गिरने से जिन कर्मचारियो को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से हानि हुई है वो सभी सहानूभूति के पात्र हैं…। वो चिंता न करें, उनके साथ परमपिता परमेश्वर न्याय अवश्य करेंगे।
एक और चीज़ है जो गिर रही है और वो है बारिश…। खासकर दिल्ली की बारिश…ऐसी बारिश जिसका ना आदि पता चलता है ना अंत…। अगर भीगने की इच्छा भी हो तो बस कुछ बूँदों ही आपको संतुष्ट होना पड़ेगा…। तृप्त नही हो सकते। मगर फिर भी रह– रह कर बारिश अपने अस्तित्व का बोध कराती रहती है…। परिणामस्वरूप उमस और कीचड़ दोनो ही आम जनमानस को त्रस्त किए हुए हैं…। दिल्ली महानगर मे एक पंखे के नीचे रहने वाले और नंगे पैर चलने वाले लोगों से मेरी पूर्ण सहानूभूति है…।
सबसे दुखद बात है अभी दो दिन मे दिल्ली मेट्रो के दो निर्माणाधीन पिल्लर गिरना। अनेक लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं और कई घायल हो गए। सिवाय सहानुभूति व्यक्त करने और श्रद्धांजलि अर्पित करने के अलावा हम और कर भी क्या सकते हैं? ईश्वर उनसभी पवित्र आत्माओं को मोक्ष प्रदान करे….।
अब बात गिरने की हो रही है तो सबसे बड़ी गिरावट की बात किए बिना कैसे पूरी हो सकती है…? संभवत: ये बात आपको हास्यास्पद लगेगी। क्योंकि मैं बात कर रहा हूँ इंसानियत मे आ रही गिरावट की…। मैं बात कर रहा हूँ दिनों-दिन गिरते मानवीय मूल्यों की, लोगों के गिरते ज़मीर की…। इंसानियत, मानवता और भाईचारा भी मेट्रो के पिल्लर की तरह है… और हर दिन न जाने कितने पिल्लर गिर रहे हैं….और कितने लोग मर रहे हैं…।
मैं जानता हूँ एक दिन बाज़ार भी उठ जाएगा..। कुछ समय बाद बारिश होगी तो वो उमस नहीं अपितु ठंडक पैदा करेगी…। मेट्रो के पिल्लर भी गिरने बंद हो जाएँगे और दिल्ली कुछ समय बाद विश्वस्तरिय यातायात संसाधनों से सुसज्जित दिखेगी…। लेकिन दोस्त इंसानियत का क्या होगा...? इसकी गिरावट कब रुकेगी…? अगर ये गिरावट इसी तरह जारी रही तो एक दिन ऊपर वाला भी हमसे सहानुभूति रखना छोड़ देगा…
एक और चीज़ है जो गिर रही है और वो है बारिश…। खासकर दिल्ली की बारिश…ऐसी बारिश जिसका ना आदि पता चलता है ना अंत…। अगर भीगने की इच्छा भी हो तो बस कुछ बूँदों ही आपको संतुष्ट होना पड़ेगा…। तृप्त नही हो सकते। मगर फिर भी रह– रह कर बारिश अपने अस्तित्व का बोध कराती रहती है…। परिणामस्वरूप उमस और कीचड़ दोनो ही आम जनमानस को त्रस्त किए हुए हैं…। दिल्ली महानगर मे एक पंखे के नीचे रहने वाले और नंगे पैर चलने वाले लोगों से मेरी पूर्ण सहानूभूति है…।
सबसे दुखद बात है अभी दो दिन मे दिल्ली मेट्रो के दो निर्माणाधीन पिल्लर गिरना। अनेक लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं और कई घायल हो गए। सिवाय सहानुभूति व्यक्त करने और श्रद्धांजलि अर्पित करने के अलावा हम और कर भी क्या सकते हैं? ईश्वर उनसभी पवित्र आत्माओं को मोक्ष प्रदान करे….।
अब बात गिरने की हो रही है तो सबसे बड़ी गिरावट की बात किए बिना कैसे पूरी हो सकती है…? संभवत: ये बात आपको हास्यास्पद लगेगी। क्योंकि मैं बात कर रहा हूँ इंसानियत मे आ रही गिरावट की…। मैं बात कर रहा हूँ दिनों-दिन गिरते मानवीय मूल्यों की, लोगों के गिरते ज़मीर की…। इंसानियत, मानवता और भाईचारा भी मेट्रो के पिल्लर की तरह है… और हर दिन न जाने कितने पिल्लर गिर रहे हैं….और कितने लोग मर रहे हैं…।
मैं जानता हूँ एक दिन बाज़ार भी उठ जाएगा..। कुछ समय बाद बारिश होगी तो वो उमस नहीं अपितु ठंडक पैदा करेगी…। मेट्रो के पिल्लर भी गिरने बंद हो जाएँगे और दिल्ली कुछ समय बाद विश्वस्तरिय यातायात संसाधनों से सुसज्जित दिखेगी…। लेकिन दोस्त इंसानियत का क्या होगा...? इसकी गिरावट कब रुकेगी…? अगर ये गिरावट इसी तरह जारी रही तो एक दिन ऊपर वाला भी हमसे सहानुभूति रखना छोड़ देगा…
सही कहा, मानवता में आ रही गिरावट को रोकने का कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा...। ये सामाजिक, नैतिक मूल्यों के पतन का दौर है... आधुनिकता के नाम पशुवादी संस्कृति का अनुसरण ही इसके लिए उत्तरदायी है
यह गिरावट नही रुकने वाली, लेकिन यह गिरावट कही फ़ेले ना बस, बस जो गिर चुके है वो तो मानेगे नही बाकी लोगो को वक्त पर अकल आ जाये
गोपाल भाई जब मैने आपके साथ पहला शूट किया था और आपकी स्क्रिप्ट देखी थी मुझे तभी पता चल गया था की आप अछा लिखते हो. लेकिन आपका ये आर्टिकल पड़ने के बाद मैं समझ गया हून की ये लड़का बहुत आगे जाएगा. पर एक शिकायत है भाई आपने पहले क्यों नहीं बताया की आप ब्लॉग पर भी लिखते हो. चलो कोई बात नहीं. बहुत अछा लिखा है भाई.
इंसानियत का क्या होगा...? इसकी गिरावट कब रुकेगी…?
बहुत सही प्रश्न है।
You are rockingg Bro....
rit now i am thinking why you are not join an social organization...like any Samaj Seva Organization....I think you are fit for that....
Thnk on it....& Keep writing
Because I have a soft corner for Writer.....specialy creative writer.....
गोपाल जी सामाजिक सेवा संस्थान मे कार्य करने का सुझाव देने की लिए धन्यवाद…मैं आपके प्रस्ताव पर अवश्य विचार करूँगा…..
आदर्श भाई बहुत अच्छा तर्क प्रस्तुत किया आपने आधुनिकता के नाम पर अंध अनुकरण ही इसके लिए उत्तरदायी है…..
राज साहब सही कहते हैं आप की कहीं ये गिरावट फैल ना जाए...आपकी तरह मैं भी उमीद करता हूँ की अब ये नैतिक मूल्यों का पतन होने से रुक जाए
गुड्डू भाई आपने कुछ ज़्यादा ही लिख दिया….खैर आपने लेख पढ़ा आपका बहुत बहुत धनयवाद
जो कुछ गिरे गिरता रहे। गिरना और उठना तो नियम है. लेकिन इंसना का गिरना बड़ी घटना है। है ना?
भइया गिरावट का ये दौर अब कभी थम नहीं पाएगा
कहाँ से कहाँ की बात लिंक कर दी. आपके लेखन का अंदाज़ अच्छा लगा. इसी तरह धारदार लिखते रहें
nice post Gopal ji
Keep it up.
yaar maza aa gaya. bahut sahi likha hai boss. kamal kar diya
इस ब्लॉग का स्तर गिरता जा रहा था। अब उम्मीद की जा सकती है कि दोबारा इसमें अच्छे लेख पढ़ने को मिलेंगे।
बात तो सही कह रहे हो मित्र गिर गिर कर इतने गिर चुके है कि धरातल पर गिरने के बाद भी गिरने की सोच रहे हैं
आपके विचारों से सहमत हुं गोपालजी...वैश्विक मंदी का रोना तो एक दिन खत्म हो जाएगा, और बाजार भी इस गिरावट के बाद फिर से उठकर किलकारियां भरने लगेगा, लेकिन जो कभी उठने वाला नहीं है वो है इंसानियत में आई गिरावट। ये वो गिरावट है जो आत्मा को अपने साथ लेकर ही खत्म होगी । इसलिए गिरी हुई इंसानियत को उठाने की सोचने से बेहतर होगा जब भी इंसानियत डगमगाए उसी वक्त उसे थाम लें। बदलते वक्त ने बड़ी धीमी गति से इंसानों की सोच और उसके आत्मबल को खोखला कर दिया है। और इस खोखलेपन के भीतर इंसानियत अपने को बड़ी कमजोर महसूस करती है। जरुरत है उसे थोड़े से सहयोग की जो हम और आप एक-दूसरे को दें सकते हैं।
सुनीता सिंह
सुनीता जी आपकी प्रतिक्रिया पड़कर मुझे आती प्रसन्नता हुई…..आपने तो मेरे लेख को उपसंहार तक पहुँचा दिया…….उसे एक सटीक निष्कर्ष दे दिया,,,,….”डगमगाती हुई इंसानियत को वही पर थाम लिया जाए” बहुत खूब लिखा है आपने….
अब मुझे विश्वास है की पाठकों को प्याला का रसास्वादन करने मे पूर्ण उन्मादकता का अनुभव होगा…..आप समस्त बुधीजीवियों ने अपनी टिप्पणियाँ इस लेख से सन्दर्भ मे प्रकाशित की….मैं आप सभी का तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ…..