क्या आप अपने बच्चे या किसी भी बच्चे को ऐसे स्कूल में भेजना चाहेंगे जिसके मेन गेट पर उस स्कूल का नाम ही गलत लिखा हो? नोएडा के 12-22 के पास ही दो जगह ऐसे स्कूल हैं जिनके नाम ही गलत लिखे गए हैं। एक जगह लिखा गया है "इंटर कालिज" और एक जगह लिखा है "महात्मा गांधी विद्यालय हाई स्कूल"। खास बात ये कि दोनों के दोनों ही सरकारी स्कूल हैं। कॉलेज को कॉलिज जाने क्यों लिखा गया है? खैर, इसमें तो ज्यादा भेद नहीं है लेकिन दूसरे वाले स्कूल में दो बार "स्कूल" क्यों लिखा गया है। खैर, इन दोनों स्कूलों के बीच में एक दीवार है, उस दीवार पर एक विज्ञापन लिखा गया है। ज़रा ध्यान दें कि उसमें क्या लिखा है--राष्ट्रीय साक्षरता कम्प्यूटर शिक्षा मिशन। शायद विज्ञापन लिखने वाले ने ही दोनों स्कूलों के मेन गेट पर लिखा होगा। मान लिया कि पेंटर को स्कूल और विद्यालय का मतलब नहीं पता और उसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए ऐसा लिख दिया है। लेकिन फिर सवाल खड़ा होता है कि वहां पढ़ाने वाले अध्यापकों ने क्यों नहीं इस गलती को सुधारने की कोशिश की? क्यों नहीं उन्होंने तुरंत इस भूल को सुधारना चाहा? अब दोनों स्कूलों के बोर्ड्स पुराने हो चुके हैं, लेकिन यहीं से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि हम कितने लापरवाह हैं। विद्या के जिस मंदिर में बच्चे पढ़ने जाते हैं, उस मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही अगर इतनी बड़ी गलती (जिसे चाहकर भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता) हो तो आकलन किया जा सकता है कि उसके अंदर क्या होता होगा।
जो अध्यापक रोज़ उसी गेट में से अंदर जाता होगा, वो क्या शिक्षा देता होगा समझा जा सकता है। और तो और उस स्कूल के प्रधानाचार्य को तुरंत सस्पेंड कर देना चाहिए जिसने इस गलती को नहीं सुधारा। एक स्कूल ही अगर मेन रोड पर आने-जाने वाले लोगों के बीच मखौल बन जाए तो इससे ज्यादा शर्म की बात क्या हो सकती है। दिन भर कुर्सी तोड़ मेहनत करने वाले इन लोगों की वजह से ही सरकारी स्कूलों का स्तर गिर रहा है। इन्हीं लोगों की वजह से आज शिक्षा एक व्यापार, एक धंधा बनकर रह गई है। यही वजह है कि आज लोग अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजने के बजाय किसी फर्जी से पब्लिक स्कूल में भेजना ज्यादा पसंद करते हैं। ये तो रही नोएडा की बात, जो कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है, लेकिन बाकी यूपी और देश के दूसरे हिस्सों का क्या हाल होगा, भगवान जाने। बचपन से जिस सपने को मैं देखता आया हूं, इस जन्म में तो वो सपना ही रह जाएगा। मन करता ही कि मैं भी यूरोप जैसे माहौल (स्वच्छ) में रहूं,
लेकिन इसके लिए मैं वहां नहीं जाना चाहूंगा। मेरा सपना है कि भारत उनसे भी आगे जाए। अगर भगवान मुझे मोक्ष भी देना चाहे तब भी इन्कार कर दूंगा। मुझे एक विकसित भारत में जीना है, एक ऐसे भारत में जो स्वच्छ हो, विश्व में सबसे आगे हो.......। बचपन में बहुत भाषण प्रतियोगिताओं में भाग लिया है, और कई बार भाषण का अंत इन लाइनों से किया था कि खुद को बदलो, दुनिया खुद ब खुद बदल जाएगी। अब सोचने समझने लायक हुआ हूं तो समझ आता है कि इस तरह की बातें महज बातें ही होती हैं। खुद को बदलना को सही है लेकिन खुद के बदलने से दूसरे के बदलने की उम्मीद करना बेमानी है। दूसरों को बदलने के लिए किसी और तरीके की ज़रूरत पड़ेगी।
जो अध्यापक रोज़ उसी गेट में से अंदर जाता होगा, वो क्या शिक्षा देता होगा समझा जा सकता है। और तो और उस स्कूल के प्रधानाचार्य को तुरंत सस्पेंड कर देना चाहिए जिसने इस गलती को नहीं सुधारा। एक स्कूल ही अगर मेन रोड पर आने-जाने वाले लोगों के बीच मखौल बन जाए तो इससे ज्यादा शर्म की बात क्या हो सकती है। दिन भर कुर्सी तोड़ मेहनत करने वाले इन लोगों की वजह से ही सरकारी स्कूलों का स्तर गिर रहा है। इन्हीं लोगों की वजह से आज शिक्षा एक व्यापार, एक धंधा बनकर रह गई है। यही वजह है कि आज लोग अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजने के बजाय किसी फर्जी से पब्लिक स्कूल में भेजना ज्यादा पसंद करते हैं। ये तो रही नोएडा की बात, जो कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है, लेकिन बाकी यूपी और देश के दूसरे हिस्सों का क्या हाल होगा, भगवान जाने। बचपन से जिस सपने को मैं देखता आया हूं, इस जन्म में तो वो सपना ही रह जाएगा। मन करता ही कि मैं भी यूरोप जैसे माहौल (स्वच्छ) में रहूं,
लेकिन इसके लिए मैं वहां नहीं जाना चाहूंगा। मेरा सपना है कि भारत उनसे भी आगे जाए। अगर भगवान मुझे मोक्ष भी देना चाहे तब भी इन्कार कर दूंगा। मुझे एक विकसित भारत में जीना है, एक ऐसे भारत में जो स्वच्छ हो, विश्व में सबसे आगे हो.......। बचपन में बहुत भाषण प्रतियोगिताओं में भाग लिया है, और कई बार भाषण का अंत इन लाइनों से किया था कि खुद को बदलो, दुनिया खुद ब खुद बदल जाएगी। अब सोचने समझने लायक हुआ हूं तो समझ आता है कि इस तरह की बातें महज बातें ही होती हैं। खुद को बदलना को सही है लेकिन खुद के बदलने से दूसरे के बदलने की उम्मीद करना बेमानी है। दूसरों को बदलने के लिए किसी और तरीके की ज़रूरत पड़ेगी।
आदर्श भाई को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं। आप बहुत अच्छा लिखते हैं।
यह तो सचमुच अच्छी बातों का ब्लाग है!
आदर्श भाई आप की बातो से बहुत साहस मिलता है, ओर सचाई भी समाने आती है, अगर लोग सुधरना चाहे तो सब कुछ हो सकता है, लेकिन हमारे यहां कोई नही सुधरना चाहता,पता नही क्यो??
धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
बहुत सुंदर | आपकी आवाज में शानदार खनक है |
ab sudur dehati kshetra ki baat to dur shahron ke skulon ki bhi yahi haalat hai. maine bhi jharkhand ke lagbhag sabhi skulon ka jayeja liya tha aur sabki kamobes yahi sthiti thi. abhut sharm aati hai mujhe ab hindustani hone par.
khair....naye saal ki badhai.
HI adarsh
its really good, keep rocking man
दोस्त कड़वा सच यही है कि हिंदी अपने ही घर में बेगानों की तरह है। ऐसे नज़ारे सरकारी दफ़्तरों में तो आम हो चुके हैं।
lol,so nice
राष्ट्र का निर्माण सिर्फ सरकार की ही ज़िम्मेदारी ही नहीं है | यहाँ रहने वाले नागरिकों का भी ये कर्त्तव्य है कि वो उदासीन हो कर न बैठें|
सही बात है नवनीत,