जब कभी
झांकता हूं अतीत में अपने,
ताले खोलकर
होता हूं कमरे में दाखिल
करता हूं साफ जालों को
तो देखता हूं
पहले के मुकाबले
सब कुछ और भी बढ़कर...
लेकिन
मुट्ठी में समेट लेने को
होता है पहले से भी कमतर...
-सुकृता पॉल कुमार की कविता Unloyal Memory का हिन्दी अनुवाद (मेरे द्वारा)
झांकता हूं अतीत में अपने,
ताले खोलकर
होता हूं कमरे में दाखिल
करता हूं साफ जालों को
तो देखता हूं
पहले के मुकाबले
सब कुछ और भी बढ़कर...
लेकिन
मुट्ठी में समेट लेने को
होता है पहले से भी कमतर...
-सुकृता पॉल कुमार की कविता Unloyal Memory का हिन्दी अनुवाद (मेरे द्वारा)