Aadarsh Rathore
सपने बीमार हैं, मृत है हरेक उमंग
सारी दुनिया भागे सुनहरी रेत के संग,
दिन गुज़रे इनका माया के पीछे
और कटे रातें कामेच्छा के नीचे,
ये बता सकते हैं तो बस सोने का रंग।




हरा बना इस्लाम का, भगवा बना हिन्दू का रंग
देखकर ये सब उल्टा सीधा, खुद ऊपर वाला है दंग,
रंगों का रंग बेरंग हो गया
स्वर्ण रंग के अंग-संग हो गया,
फिर कौन बताए कि क्या है रंग?



(AMITY UNIVERSITY के राष्ट्रीय मीडिया फेस्टिवल BIG PICTURE-2005 में प्रथम पैरा के लिए कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार हासिल किया था। सुबह-सुबह अपने बक्से में कुछ खोज रहा था तो एक पुराना कागज़ मिला। उस कागज में यही रचना लिखी हुई थी। सोचा कि इसे साझा किया जाए। इस प्रतियोगिता में ऑन द स्पॉट विषय दिया जाना था जिस पर aa,bb,a फॉरमेट में कविता लिखनी थी। मुझे रंग विषय मिला जिस पर सीमित समय में कुछ लिखना था। मेरे मन में रंग को लेकर जो भाव उत्पन्न हुए, सीधे ही कागज़ में उतार दिए थे। दूसरा वाला पैरा भी प्रतियोगिता के दौरान ही लिखा था लेकिन मैंने पहले वाले को ही शामिल किया था।)
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4 Responses
  1. बहुत ही सुंदर भाव, सुंदर कविता.सुंदर चित्र
    धन्यवाद


  2. आज पहली दफे यह कविता पढ़ी...इससे पहले आप ने कई बार इसका जिक्र किया है...याद है कि कविता फेस्ट चल रहा था और 15 मिनट के अंदर कविता लिखना था...और जब इनाम की बारी आई तो तुम्हारा नाम अमेटी यूनिवर्सिटी में लिया गया और तुम खिद स्तब्ध थे...पहला स्थान मिला ता तुम्हारी इस कविता को आशा है तुम्हे हिंदी साहित्य की सेवा करते हुए आगे देखंगा


  3. Anonymous Says:

    Very good!


  4. बढिय़ा कविता