tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post1148518555522470265..comments2023-11-05T13:57:47.042+05:30Comments on एक प्याला विचार भरा...: कविताओं के सरलार्थ नहीं गूढ़ार्थ ढूंढ़े जाने चाहिएAadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-26086132128580485472009-06-07T22:18:20.660+05:302009-06-07T22:18:20.660+05:30समय को यह पूरी बहस अपने ब्लॉग पर पोस्ट करनी चाहि...समय को यह पूरी बहस अपने ब्लॉग पर पोस्ट करनी चाहिए। मुझे लगता है कि शशांक भाई की टिप्पणियों ने समय की समझ में इज़ाफा करने में वाकई मदद की है और उनके जरिए हम लोगों के लिए भी धूमिल की कविता और उसके निहितार्थ स्पष्ट हुए।संदीपhttps://www.blogger.com/profile/01871787984864513003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-12997717118239729362009-06-07T21:38:17.113+05:302009-06-07T21:38:17.113+05:30आदरणीय शशांक जी,
आपने कुछ महत्वपूर्ण बिंदू उठाये ह...आदरणीय शशांक जी,<br />आपने कुछ महत्वपूर्ण बिंदू उठाये हैं।<br /><br />पहली जो उल्लेखनीय बात है वह कविता के शिल्प और कथ्य से संबंधित है<br />आप लगता है कविता के शिल्प के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं।<br />जिन मानव श्रेष्ठों के लिए कविता मानसिक शगल और व्यक्तिगत सरोकारों का वाइस होती है वहां आपका यह कहना सही है कि "कवितायें लिखी नहीं जाती पर बरबस यूंही कभी दिमाग में कोई सोच आती है भाव आता है शब्दों का जाल कविता बन जाता है", पर जिन मानव श्रेष्ठों के लिए कविता एक जिम्मेदारी का अहसास होती है, जिसे वे अपनी पूरी वैचारिक समझ के साथ एक परिवर्तन के हथियार की तरह प्रस्तुत करते है और अपनी संवेदनशीलता को व्याक्तिगत उंहापोहो से आगे ले जाकर उसे सामाजिक सरोकारों तक विस्तार देते हैं, उनके लिए कथ्य ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है।<br />फिर कविता ऐसे ही उभरी अस्पष्ट सी सोच या आशु भावों की शब्दों की तुरत-फुरत शिल्पगत अभिव्यक्ति मात्र नहीं रह जाती, वरन शिल्प की सीमाओं के अन्दर और यदि जरूरी है तो इन सीमाओं को तोडकर भी अपनी बात को, निश्चित सोच को पुरजोर तरीके से रखने की कोशिश करती है।<br />इसीलिए हम देखते हैं कि जब कविता ने यह जिम्मेदारी महसूस की, वह छंद-बंद के पुराने शिल्पगत बंधंनों से मुक्त होकर सरल अतुकांत नयी कविता के रूप में सामने आई। अब कई महान साहित्यकार इसमें भी शिल्प की जकडन उलझा कर वापस इसे स्वांतसुखाय की ओर ले जाना चाहते हैं।<br />यह कहने का मतलब ये कतई नहीं हैं की शिल्प से कोई मतलब ही नहीं होता कविता का। शिल्प का उचित गठन, कथ्य को प्रभावशाली और अचूक बनाता है, परंतु किसी एक का अतिरेक कविता को कमजोर करता है। कथ्य कविता के सामाजिक सरोकारों और सौद्देशीयता को मुखर करता है और शिल्प इसके प्रभाव को।<br /><br />आपने यह बिल्कुल सही पकडा है कि धूमिल जी की उक्त कविता में पंक्तियों के बीच जुडाव और निरंतरता की कमी खलती है। परंतु धूमिल जी का कविता शिल्प शब्दों की मितव्ययता पर टिका है, वे कम से कम शब्दों का प्रयोग करते हुए प्रतीकों और अभिव्यंजनाओं में अपने कथ्य को प्रस्तुत करते हैं और पाठक से एक गंभीर संवाद कायम करना चाहते हैं, जिसमें पाठक की चेतना को संस्कारित करने का, उसके मस्तिष्क का सचेत परिष्कार करने का उद्देश्य शामिल होता है।<br />जिन मनुष्य श्रेष्ठों का उद्देश्य यही होता है, वे इन कविताओं से गुजरकर इन्हें अपने व्यक्तित्व और समझ के विकास का जरिया बना सकते हैं, और जो मनुष्य सिर्फ़ मनोरंजन का एकान्तिक आनंद भोगने के लिए इन पर सरसरी नज़र डालते हैं उनके लिए ये कविताएं एक अबूझ पहेली बनकर रह जाती हैं या वे चलताऊ ढंग से इनकी तुरत-फुरत मनचाही व्याख्या कर अपनी तात्कालिक संतुष्टि प्राप्त कर लेते हैं।<br /><br />और उक्त कविता के संदर्भ में एक और अंतिम बात। ऐसा कतई नहीं है कि यहां जुडाव और निरंतरता सिरे से ही गायब हो।<br /><br />यह गरीब इस कविता से पहले नहीं गुजरा है, और ना ही इसके मूल पाठ के बारे में कुछ पता है कि यही पूरी कविता है या कुछ छूट गया है, फिर भी दोबारा देखने से जो लगा वो यह है कि पहली तीन पंक्तियों में वे शब्द और कविता की बात करते हैं, अगली दो पंक्तियों में कविता के सरोकारों के रूप में आदमी को केन्द्र में रखे जाने की बात करते हैं, फिर आगे की चार पंक्तियों में कौनसे आदमी को केन्द्र में रखा जाना है, किस आदमी का आपको पक्ष लेना है उनका जो मार रहे हैं या उनका जो मारे जा रहे हैं, आपकी संवेदनशीलता किस चीज़ पर द्रवित हो रही है। जाहिरा तौर पर यहां धूमिल आपके मन में मिट्टी और खून के रंग की चर्चा कर उसकी सिर्फ़ आवाज़ से तुलना कर हमें प्रेरित कर रहे हैं कि हम शोषितों के पक्ष को अपनी संवेदना से जोडें। <br />उसके आगे की चार पंक्तियों में धूमिल जी अब साफ़-साफ़ इशारा करते हैं आपकी आगे के क्रियाकलाप और व्यवहारों की दिशा क्या होनी चाहिए, अगर आप वाकई में उन लोगों का पक्ष चुनना चाह रहे हैं जो दमित और शोषित हैं तो आपको अपनी समझ और क्रियाशीलता का उत्स उन्हीं के बीच से खोजना होगा, वहीं आपको सही राह मिल पाएगी क्योंकि उनसे अलगाव के साथ, आपके पक्षपोषण की ईमानदारी कायम रहने के बाबजूद आपके वैचारिक और क्रियात्मक भटकाव की पूरी संभावनाएं हैं।<br /><br />अरे वाह। दोबारा पढ़ने पर तो यह गरीब भी खुद अभिभूत हो उठा है कि इन आठ-दस पंक्तियों में तो साहित्य, उसके सरोकारों और क्रियाशीलता की सही दशा-दिशा का पूरा दर्शन छिपा हुआ था।<br /><br />आदर्श जी और शशांक जी का अब मैं वाकई तहे-दिल से शुक्रिया करना चाहता हूं जिनकी कि जुंबिशों की वजह से इस खाकसार को अपनी चेतना के परिष्कार का अवसर मिला और वह अपनी समझ में काफ़ी-कुछ जोड पाया।<br /><br />एक बार फिर शुक्रिया !!<br />समय सोच रहा है कि इस दृष्टिकोण को अपने ब्लॉग पर भी पेश कर दिया जाए।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-18205538678434869742009-06-07T15:24:55.409+05:302009-06-07T15:24:55.409+05:30समय जी ने जो विचार रखें है उसे देखकर लगता है कि का...समय जी ने जो विचार रखें है उसे देखकर लगता है कि काफी हद तक वो सही है लेकिन एक बात जो इस कविता में छुपी हुई है कि यदि धूमिल जी ने इस कविता को लिखते वक्त क्या सोच रहे होंगे क्योंकि अक्सर होता क्या है कि कवितायें लिखी नहीं जाती पर बरबस यूंही कभी दिमाग में कोई सोच आती है भाव आता है शब्दों का जाल कविता बन जाता है समय जी ने जो गूढ़ आर्थ निकाला है उससे मैं संतुष्ठ हूं पर सही है पर क्यों धूमिल इस कविता के पहली चार पंक्तियों से अगली चार पंक्तियों के गूढ़ अर्थ से जुड़ती नज़र नही आ रही है क्योंकि शब्दों का गठन अलग हो सकता है चयन भी अलग हो सकता है पर अर्थ और भावार्थ अलग नहीं हो सकता क्यों कविता जब तक पहली चार पंक्तियों को अगली के ज़रियें नहीं समझाती तो उसे कविता नहीं कह सकते है समय जी के कविता भावार्थ से ये जुड़ाव कम ही दिखता है। कविता में जो कि बहुत ज़रुरी है वो ये कि शुरुआत से लेकर अंत तक शब्द चयन वाक्य का अर्थ अलग हो सकता है पर भावार्थ अलग नहीं हो सकता है।शशांक शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/00569926392676984136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-88073755396490954662009-06-07T09:11:22.501+05:302009-06-07T09:11:22.501+05:30Itz a nice blog with with a very aesthetically des...Itz a nice blog with with a very aesthetically designed layout. I read ur post on Himachali caps on Mohalla and left a long comment. It didn't get published . Why? I don't know. Therefore i have searched this blog of yours to convey my praise for writing a wonderfully informative article. <br /> I simply adore hills ,but it is disappointing to see that no one except tourists write on Himachal in Hindi blog world. I have read a lot here on Uttranchal ,but very little on HP.<br /> I request u to write more on HP--its culture, problems and politics as well.You will find good number of readers like me.मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-1141897066014074452009-06-06T22:59:55.437+05:302009-06-06T22:59:55.437+05:30वाह आदर्श बाबू,
आपने तो गरीब की टिप्पणी को ही पोस्...वाह आदर्श बाबू,<br />आपने तो गरीब की टिप्पणी को ही पोस्ट बना दिया।<br /><br />उत्तेजनावश वह टिप्प्णी लिख मारी थी, क्योंकि कहीं आहत हुआ था।<br /><br />सोच रहा था आप पता नहीं कैसे लेंगे?<br /><br />अब तसल्ली है. शुक्रिया!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-10485290346056872382009-06-06T21:01:01.304+05:302009-06-06T21:01:01.304+05:30धूमिल जी ये रचना वाकई उत्कृष्ठ हैधूमिल जी ये रचना वाकई उत्कृष्ठ हैYachnahttps://www.blogger.com/profile/02256776980796502196noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-49917769465870454252009-06-06T20:52:38.481+05:302009-06-06T20:52:38.481+05:30bahut badhia...bahut badhia...कलम का सिपाहीhttps://www.blogger.com/profile/07232274268626111308noreply@blogger.com